भारत की सबसे अत्यधिक प्राचीन नृत्य शैली "कथक" से कौन परिचित नहीं। लेकिन सभी यह जान जरूर आश्चर्यचकित होंगे की कथक भी सृष्टिकर्ता वाल्मीकि द्वारा आदि आरम को बख्शी नृत्य शैली है।
सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान जी द्वारा रचित महाकाव्य रामायण को इस देश के आदिवासी सुमदाय आम लोगों तक गायन और नृत्य प्रस्तुति द्वारा प्रचारित किया करते थे । गायन के साथ नृत्य पेश करने वाले को कुशी-लव कहा जाने लगा और कुशीलव की इस नृत्य शैली को कथक नाम दिया गया।
कुशी-लव के बाद सृष्टिकर्ता वाल्मीकि द्वारा कुश लव ने भी इसी शैली द्वारा राम दरबार में पूरी रामायण पेश की थी। पर देश में बाहरी हमलों के कारण इस शैली में बहुत से परिवर्तन आए। धर्म से हट यह शैली राजदरबारों का अंग बन गयी। इसके मूल रूप को बिगाड़ कर रख दिया गया। मगर लखनऊ में यह शैली आज भी उसी रूप में है।
कथक जैसी नृत्य शैली वाल्मीकिन समाज की इतिहासिक धरोहर का एक अटूट अंग है जो हमें गर्वित करती है।
(सन्दर्भ-डॉ तमसा योगेश्वरी द्वारा लुधियाना सेमिनार में प्रस्तुत कुशीलव समुदाय की सम्पूर्ण चर्चा और संगीत पुस्तक का सफा नं 160)
विक्की देवान्तक