बुधवार, 31 मई 2017

कथक के जन्मदाता वाल्मीकि जी के कुशीलव


भारत की सबसे अत्यधिक प्राचीन नृत्य शैली "कथक" से कौन परिचित नहीं। लेकिन सभी यह जान जरूर आश्चर्यचकित होंगे की कथक भी सृष्टिकर्ता वाल्मीकि द्वारा आदि आरम को बख्शी नृत्य शैली है।

सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान जी द्वारा रचित महाकाव्य रामायण को इस देश के आदिवासी सुमदाय आम लोगों तक गायन और नृत्य प्रस्तुति द्वारा प्रचारित किया करते थे । गायन के साथ नृत्य पेश करने वाले को कुशी-लव कहा जाने लगा और कुशीलव की इस नृत्य शैली को कथक नाम दिया गया।

कुशी-लव के बाद सृष्टिकर्ता वाल्मीकि द्वारा कुश लव ने भी इसी शैली द्वारा राम दरबार में पूरी रामायण पेश की थी। पर देश में बाहरी हमलों के कारण इस शैली में बहुत से परिवर्तन आए। धर्म से हट यह शैली राजदरबारों का अंग बन गयी। इसके मूल रूप को बिगाड़ कर रख दिया गया। मगर लखनऊ में यह शैली आज भी उसी रूप में है।

कथक जैसी नृत्य शैली वाल्मीकिन समाज की इतिहासिक धरोहर का एक अटूट अंग है जो हमें गर्वित करती है।

(सन्दर्भ-डॉ तमसा योगेश्वरी द्वारा लुधियाना सेमिनार में प्रस्तुत कुशीलव समुदाय की सम्पूर्ण चर्चा और संगीत पुस्तक का सफा नं 160)

विक्की देवान्तक

सोमवार, 29 मई 2017

प्रकृति रक्षक "राक्षस"

जय वाल्मीकि जय भीम

#सृष्टिकर्ता_द्वारा_प्रकृति_के_रूप_में_सबसे_सुंदर_सौगात_के_रक्षक_रहे_हैं_हम_राक्षस

महात्मा लंकापति रावण की तरह ही  उनके परिवार द्वारा सृष्टिकर्ता वाल्मीकि द्वारा रचित परियावरण की रक्षा की जाती थी। क्योंकि कुदरत हमें जीवित रहने के लिए सब कुछ बख्शती है हवा से लेकर अन्न तक,जो सभी जीवों के लिए समान है मनुष्य से लेकर जानवर तक और वृक्ष से लेकर पौधों तक। इसलिए हमें जीवन देने वाली कुदरत को जीवित रखना भी हमारा कर्तव्य है। जिसे आदि आरम(धर्म) के महान पूर्वजों ने बखूबी निभाया जिसके बदले उन्हें परियावरण को नुकसान पहूंचाने वालों ने राक्षस जैसे शब्द जोड़ दिए।

आदिवासियों की ये रक्ष संस्कृति बहुत ही महान थी। महात्मा रावण के मामा सूण्ड और उनकी पत्नी माँ ताड़का के बेटे वीर सुबाहू भी इस रक्ष संस्कृति के एक अभिन्न अंग थे। जो कुदरत को हानि पहुँचाने वाले हवन-यज्ञों को भंग किया करते थे क्योंकि तब हवन में वृक्ष,अन्न,फल-फूल और पशुओं की बलि दी जाती थी ।  वीर सुबाहू ने कुदरत की रक्षा हेतु इन हवन यज्ञों को भंग करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।

ऐसा नही कि हमे कूटनीतियों द्वारा रक्ष संस्कृति से तोड़ हवन-यज्ञ प्रथा से जोड़ने की कोशिश नहीं की गयी। उसका उदाहरण हम हमारे समाज में होने वाली भूत पूजा में देख सकते हैं जिसमें एक गोबर के जलते टुकड़े पर घी डाल धुंआ फैलाया जाता है,जिसमें हवन यज्ञ की छवि दिखाई पड़ती है।शायद ये बतलाता है कि हमें कुदरत रक्षा से तोड़ने के लिए ऐसी कुरीतियों से जोड़ा गया। लेकिन देश के कुछ आदिवासी समुदाय आज भी उस रक्ष संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं जो सृष्टिकर्ता को कुदरत के रूप में पूजते हैं और उसकी रक्षा के लिए पूंजीवादियों से ख़ूनी जंग लड़ रहे हैं। हमारे पूर्वजों को जैसे रक्षस से राक्षस बनाया इन रक्ष संस्कृति के रक्षकों को नक्सली बना दिया गया है।

#विक्की_देवान्तक
#आधस_भारत
9988757204

मोक्षदायिनी माँ शबरी

हमने माँ शबरी के बारे बस यही धारणा सुनी व मानी है जो टैलीविजनों द्वारा हमे दिखाया गया कि शबरी एक बुजुर्ग भीलणी थी जो राम भक्त थी...