Vicky Devantak
बुधवार, 15 जुलाई 2020
मोक्षदायिनी माँ शबरी
सोमवार, 6 जुलाई 2020
सुय्या महान इंजीनियर
बुधवार, 1 जुलाई 2020
"वानर" यानि वन में रहने वाले
बुधवार, 31 मई 2017
कथक के जन्मदाता वाल्मीकि जी के कुशीलव
भारत की सबसे अत्यधिक प्राचीन नृत्य शैली "कथक" से कौन परिचित नहीं। लेकिन सभी यह जान जरूर आश्चर्यचकित होंगे की कथक भी सृष्टिकर्ता वाल्मीकि द्वारा आदि आरम को बख्शी नृत्य शैली है।
सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान जी द्वारा रचित महाकाव्य रामायण को इस देश के आदिवासी सुमदाय आम लोगों तक गायन और नृत्य प्रस्तुति द्वारा प्रचारित किया करते थे । गायन के साथ नृत्य पेश करने वाले को कुशी-लव कहा जाने लगा और कुशीलव की इस नृत्य शैली को कथक नाम दिया गया।
कुशी-लव के बाद सृष्टिकर्ता वाल्मीकि द्वारा कुश लव ने भी इसी शैली द्वारा राम दरबार में पूरी रामायण पेश की थी। पर देश में बाहरी हमलों के कारण इस शैली में बहुत से परिवर्तन आए। धर्म से हट यह शैली राजदरबारों का अंग बन गयी। इसके मूल रूप को बिगाड़ कर रख दिया गया। मगर लखनऊ में यह शैली आज भी उसी रूप में है।
कथक जैसी नृत्य शैली वाल्मीकिन समाज की इतिहासिक धरोहर का एक अटूट अंग है जो हमें गर्वित करती है।
(सन्दर्भ-डॉ तमसा योगेश्वरी द्वारा लुधियाना सेमिनार में प्रस्तुत कुशीलव समुदाय की सम्पूर्ण चर्चा और संगीत पुस्तक का सफा नं 160)
विक्की देवान्तक
सोमवार, 29 मई 2017
प्रकृति रक्षक "राक्षस"
जय वाल्मीकि जय भीम
#सृष्टिकर्ता_द्वारा_प्रकृति_के_रूप_में_सबसे_सुंदर_सौगात_के_रक्षक_रहे_हैं_हम_राक्षस
महात्मा लंकापति रावण की तरह ही उनके परिवार द्वारा सृष्टिकर्ता वाल्मीकि द्वारा रचित परियावरण की रक्षा की जाती थी। क्योंकि कुदरत हमें जीवित रहने के लिए सब कुछ बख्शती है हवा से लेकर अन्न तक,जो सभी जीवों के लिए समान है मनुष्य से लेकर जानवर तक और वृक्ष से लेकर पौधों तक। इसलिए हमें जीवन देने वाली कुदरत को जीवित रखना भी हमारा कर्तव्य है। जिसे आदि आरम(धर्म) के महान पूर्वजों ने बखूबी निभाया जिसके बदले उन्हें परियावरण को नुकसान पहूंचाने वालों ने राक्षस जैसे शब्द जोड़ दिए।
आदिवासियों की ये रक्ष संस्कृति बहुत ही महान थी। महात्मा रावण के मामा सूण्ड और उनकी पत्नी माँ ताड़का के बेटे वीर सुबाहू भी इस रक्ष संस्कृति के एक अभिन्न अंग थे। जो कुदरत को हानि पहुँचाने वाले हवन-यज्ञों को भंग किया करते थे क्योंकि तब हवन में वृक्ष,अन्न,फल-फूल और पशुओं की बलि दी जाती थी । वीर सुबाहू ने कुदरत की रक्षा हेतु इन हवन यज्ञों को भंग करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
ऐसा नही कि हमे कूटनीतियों द्वारा रक्ष संस्कृति से तोड़ हवन-यज्ञ प्रथा से जोड़ने की कोशिश नहीं की गयी। उसका उदाहरण हम हमारे समाज में होने वाली भूत पूजा में देख सकते हैं जिसमें एक गोबर के जलते टुकड़े पर घी डाल धुंआ फैलाया जाता है,जिसमें हवन यज्ञ की छवि दिखाई पड़ती है।शायद ये बतलाता है कि हमें कुदरत रक्षा से तोड़ने के लिए ऐसी कुरीतियों से जोड़ा गया। लेकिन देश के कुछ आदिवासी समुदाय आज भी उस रक्ष संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं जो सृष्टिकर्ता को कुदरत के रूप में पूजते हैं और उसकी रक्षा के लिए पूंजीवादियों से ख़ूनी जंग लड़ रहे हैं। हमारे पूर्वजों को जैसे रक्षस से राक्षस बनाया इन रक्ष संस्कृति के रक्षकों को नक्सली बना दिया गया है।
#विक्की_देवान्तक
#आधस_भारत
9988757204
गुरुवार, 6 अप्रैल 2017
रक्षस से राक्षस
अक्सर हमें कहानियों,चल चरित्रों,ग्रन्थों द्वारा बतलाया व दिखाया जाता है कि बीते युगों में देवों और इंसानों के इलावा एक और जीव धरती पर थे,जिन्हें राक्षस कहा जाता था। जो खूंखार किस्म के होते थे और उनका कार्य मानव मांस भक्षण,लूटपाट,देवताओं के साथ युद्ध करना था। राक्षसों की मनघड़ित रुपरेखा का भी प्रचलन किया गया कि उनके बड़े-बड़े नाख़ून,तीखे दांत,घने बाल, बदसूरत चहरा होता है।
लंकापति रावण,हिरण्यकश्यप,शंखचूड़,तक्षक आदि को राक्षसों की सूचि में रखा गया है। जबकि सत्य इसके बिलकुल विपरित है। राक्षस कोई देव या मानव से अलग प्रजाति नहीं थी। बल्कि राक्षस एक संस्कृति का नाम था। असल में ये शब्द "रक्षस" था जिसका अर्थ था रक्षा करने वाले। लेकिन समय और इतिहासिक मार ने रक्षस को राक्षस बना दिया। रक्षस संस्कृति भारत के मूलनिवासी राजाओं द्वारा शुरू की गयी थी,जिनमें लंकापति रावण,शंखचूड़,हिरण्यकश्यप आदि शामिल थे। इस संस्कृति से जुड़े दल को रक्षस दल कहा जाता था। जिनका कार्य पर्यावरण की रक्षा करना था। यह रक्षस दल पर्यावरण को नुकसान पहुचाने वाले हवन,यज्ञों और पशु बलियों के खिलाफ था और इनको रोकने के लिए वचनबद्ध था। हवन-यज्ञों के नाम पर फल,फूल,अनाज,वृक्ष आदि को अग्नि में भस्म कर दिए जाता था ,इसलिए रक्षस दल इसका घोर विरोधी था । शास्त्रों और ग्रन्थों के मुताबिक पहले हवन-यज्ञों में पशु बलि का भी प्रचलन था,जिसको रक्षस दल ने बन्द करवाया।
धर्म के ठेकेदारों ने इसी कारण महान संस्कृति को गलत तरीके से प्रचलित कर रक्षस जैसे महत्वशील शब्द को राक्षस बना दिया।
विक्की देवान्तक
मोक्षदायिनी माँ शबरी
हमने माँ शबरी के बारे बस यही धारणा सुनी व मानी है जो टैलीविजनों द्वारा हमे दिखाया गया कि शबरी एक बुजुर्ग भीलणी थी जो राम भक्त थी...
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